कर्बला के शहीदों की याद में निकला मातमी जुलूस

 कर्बला के शहीदों की याद में निकला मातमी जुलूस

- इमामबाड़ा शाबान मंजिल में हुआ मजलिस का आयोजन

- चहलुम के जुलूस में शामिल सोगवारों ने पढ़ा नौहा, किया मातम


बस्ती। कर्बला के शहीदों का चहलुम गुरुवार को मनाया गया। शहर से लेकर गांव तक ताजिया, अलम व ताबूत का जुलूस निकाला गया। जुलूस में शामिल सोगवारों ने नौहा पढ़ा व जंजीरी मातम कर खुद को लहुलूहान कर लिया। हर ओर या हुसैन की सदाएं बुलंद थी। देर शाम को कर्बला में जुलूस का समापन दुआ व सलाम के साथ हुआ। 


इमामबाड़ा शाबान मंजिल में मजलिस का आयोजन हुआ। मजलिस को सम्बोधित करते हुए डॉ. अबुजर ने कहा कि हुसैन एक विचारधारा का नाम है। जहां पर ‘जियो और जीने दो’ का संदेश दिया जाता है। अरब के उमैया शासक इस्लाम का लबादा ओढ़कर इंसानियत को शर्मसार कर रहे थे। शासक यजीद इब्ने माविया ने अपने अपराधों को इस्लाम का हिस्सा बनाने के लिए पैगम्बर के नवासे इमाम हुसैन से बैयत (विचारों के प्रति समर्पण) तलब किया। इमाम ने अपने नाना के दीन को बचाने के लिए बैयत से इंकार कर दिया और अपने 72 साथियों के साथ कर्बला के मैदान में तीन दिन की भूख प्यास के साथ शहादत पेश करना कबूल किया। 

उन्होंने कहा कि आज जो इस्लाम जिंदा है, वह इमाम की कुर्बानी की देन है। इसीलिए इस्लाम के मानने वाले इमाम की इस कुर्बानी को अकीदत व एहतराम के साथ याद करते हैं। उन्होंने कहा कि आज दुनिया के सामने सही इस्लाम की पहचान सबसे बड़ी चुनौती है। लोगों को यह समझ लेना चाहिए कि जहां हुसैनियत है, वहीं इस्लाम है। हुसैनी विचारधारा में प्रेम, सौहार्द व अमन का संदेश मिलेगा। जुल्म, आतंकवाद, नाइंसाफी, गैर बराबरी की यहां कोई जगह नहीं है। 

मजलिस के बाद सामूहिक रूप से नमाज अदा की गई। नमाज के बाद जुलूस बरामद हुआ। मुख्य मार्ग से होता हुआ जुलूस इमामबाड़ा लाडली मंजिल पहुंचा। यहां पर मजलिस के बाद जुलूस दोबारा शुरू हुआ। रोडवेज व अस्पताल चौराहा होते हुए कर्बला में समाप्त हुआ। मोहम्मद रफीक, अयान, साबिर, सोनू आदि ने नौहा पेश किया। 

मौलाना अली हसन, हाजी अनवार काजमी, शमसुल हसन, सफदर रजा, जीशान रिजवी, अन्नू, जैन, शम्स आबिद, फहीम हैदर, आले हसन, तकी हैदर, आले मुस्तफा, जावेद, आबिद अरशद, जर्रार हुसैन सहित अन्य जुलूस में शामिल रहे।  


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