अपनी असीमित लीलाओं से कृष्ण ने मानवता को कराया अमृतपान-आनन्दधर द्विवेदी

 अपनी असीमित लीलाओं से कृष्ण ने मानवता को कराया अमृतपान-आनन्दधर द्विवेदी 

बस्ती। प्रभु कृष्ण लीलाओं के असीम सागर है। लीला ही उनका समृद्धि साधन है। शैसव काल से ले उत्तकर क्षीर सागर जाने तक के काल खण्ड बीच उहोने मानव को अपनी अचंभित लीलाओ से जागृत करके सदाचार और लोकहित का संदेश दिया। उनकी बाललीला कुंठित और अवसाद ग्रसित मानवता हेतु अमृत है। रुगण और शोकाकुल मन भी एक पल उनकी बाललीला निहार कर, जैसे हर्ष की गंगा से आलोकित हो उठता है। मानव मन और मस्तिक दोनो जैसे कृष्ण के बाल लीलाओ से कमल पुंज सदृश खिल उठते हैं। धन्य है हमारे कृष्ण जो मथुरा कारागार से गोकुल और वृंदावन होते हुए द्वारकापुरी तक अपनी उपकारी लीलाओं से संपूर्ण विश्व को सरस और मृदुल वातावरण का आभास कराया। जिससे न केवल मानव वरन संपूर्ण प्राकृति भी खिलखिलाकर

हंस रही है। उक्त दार्शनिक विचार पत्रकार आनन्दधर द्विवेदी ने कृष्ण जन्मोत्सव अष्टमी पर उनकी चिर लीलाओं की स्मृति और उससे फैले जगत उपकार पर व्यक्त किया। अनगिनत दैत्यो का वध करते हुए, सम्पूर्ण आर्याव्रत समाज मे अनैतिक आचरण का प्रावल्य उहोने चुनैति के

रूप मे नही अपितु एक परोपकारी युग दृष्टा के रूप में स्वीकार किया। पत्रकार आनन्दधर द्विवेदी ने कहा कि महाभारत का युद्ध अनैतिक और नैतिक समर के रूप में उन्होंने अत्यंत वृहद के बजाय लघु रूप मे देखा था। जिसमे धर्म और अधर्म आपस में टकराए, कृष्ण की मंशा धर्म स्थापना और अधर्म के सत्यानाश की थी जो, महाभारत युद्ध के रूप में उन्होंने संपूर्ण जगत को अवलोकित कराया। राधा कृष्ण नाम ही मुक्ति का साधन है। कृष्ण दिव्य पुरुष है, और ब्रहम भी, राधा साक्षात प्रकृति देवी है। और उनकी शक्ति भी, गोपीया जीवात्मा है। और मुरली योगमाया, जिससे हमारे ब्रह्म कृष्ण अपनी अलौकिक लीलाओं से लोक कल्याण का मधुरस वरसाते है और अनायास ही विश्व कल्याण अपनी आभा लेकर समाज का भला करने लगता है।

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