बस्ती शहर में निकाला गया अलम व ताबूत का जुलूस
बस्ती। इमाम हुसैन के बेटे हजरत अली अकबर की शहादत की याद में नवीं मोहर्रम शुक्रवार दोपहर गांधी नगर में अलम व ताबूत का जुलूस निकाला गया। अली अकबर पैगम्बरे-इस्लाम की हमशक्ल थे। इमाम को जब पैगम्बर की जियारत की ख्वाहिश होती तो वह अपने इस बेटे की जियारत करते थे। कर्बला के मैदान में यजीदी फौज ने उन्हें तीन दिन तक भूखा प्यासा रखकर शहीद कर डाला था।
इमामबाड़ा खुर्शेद मंजिल में जुलूस से पूर्व मजलिस आयोजित हुई। मजलिस को सम्बोधित करते हुए मौलाना मोहम्मद हैदर खां ने कहा कि हजरत अली अकबर सूरत, आवाज आदि में पैगम्बर की प्रतिमूर्ति थे। कर्बला के मैदान में दस मोहर्रम को सुबह की अजान के लिए इमाम ने अली अकबर को हुक्म दिया। यजीदी फौज में काफी संख्या उन लोगों की थी, जिन्होंने पैगम्बर को करीब से देखा था। हजरत अली अकबर को देखने के बाद भी उन्हें अपने नबी की याद नहीं आई।
उन्होंने कहा कि कर्बला की घटना के बाद इस्लाम में दो विचारधारा वजूद में आई। एक हुसैनी व दूसरी यजीदी। इमाम हुसैन जहां अपने नाना के दीन को हर हाल में बचाना चाहते थे, वहीं यजीद इस्लाम के चरित्र को अपने अनुसार प्रस्तुत करना चाहता था। यजीद चाहता था कि इमाम उसकी बैयत कर लें। इसके लिए उसने हुक्म दिया था कि हुसैन या तो उसकी बैयत करें, नहीं तो उन्हें कत्ल कर दिया जाए।
जुलूस में शामिल लोगों ने नौहा व मातम पेश किया। जुलूस इमामबाड़ा शाबान मंजिल से होते हुए स्टेट बैंक, गांधी नगर के पीछे स्थित इमामबाड़ा मुस्तफा हुसैन पहुंचकर समाप्त हुआ। इसी क्रम में शुक्रवार की रात में इमामबाड़ा सगीर हैदर से जुलजुनाह का जुलूस निकाला गया। कर्बला में इमाम जिस घोड़े पर सवार होकर आए थे, वह नबी का घोड़ा था, जिसका नाम जुलजुनाह था।
मौलाना अली हसन, सफदर रजा, जावेद, हसनैन रिजवी, जीशान रिजवी, अरशद आबिद, फहीम हैदर, शबीब हैदर, तकी हैदर, साजिद सहित अन्य मौजूद रहे।
पुरानी बस्ती में निकाला गया जुलजुनाह व अलम का जुलूस
पुरानी बस्ती में गुरुवार देर रात जुलजुनाह व अलम का जुलूस निकाला गया। जुलूस का आयोजन पुरानी बस्ती की कदीमी तंजीम अंजुमन मोईनुल इस्लाम दारूल ऊलूम अहले सुन्नत बस्ती ने किया। संस्था के प्रबंधक मुस्तफा हुसैन ने बताया कि जुलूस में अंजुमने हैदरी हल्लौर, सिद्धार्थनगर व अंजुमन अकबरिया, अकबरपुर व अंजुमने इमामिया जमौतिया सादाता सिद्धार्थनगर ने नौहा पेश किया व मातम किया। जुलूस में चौकी, अलम, मेंहदी, जुलजुनाह शामिल रहा। उन्होंने कहा कि जिस तरह हम कर्बला के शहीदों की याद मनाते हैं, उसी तरह इमाम के घोड़े जुलजुनाह की वफादारी को भी हम याद करते हैं। जुलूस में अखाड़ा, मोहर्रमी बाजा विशेष रुप से शामिल रहा।