इमामबाड़ा शाबान मंजिल में पहली मोहर्रम को मजलिस आयोजित

 इमाम हुसैन की बहन हजरत जैनब ने रखी मजलिसों की बुनियाद

 इमामबाड़ा शाबान मंजिल में पहली मोहर्रम को मजलिस आयोजित


बस्ती। इमामबाड़ा शाबान मंजिल में गुरुवार पहली मोहर्रम को आयोजित मजलिस को सम्बोधित करते हुए मौलाना मो. हैदर खां ने कहा कि इमाम हुसैन की बहन हजरत जैनब ने मजलिसों की बुनियाद डाली। इमाम की शहादत के बाद यजीद ने इमाम के बचे हुए परिवार को सीरिया की एक जेल में एक वर्ष तक कैद में रखा। तमाम मुसीबतें बर्दाश्त करने के बाद भी इमाम के घर वालों ने यजीद की बैयत (समर्पण) स्वीकार्य नहीं की। यजीद ने थक हार कर उन्हें रिहा कर दिया। कैद से आजाद होने के बाद हजरत जैनब ने सीरिया में एक मजलिस का आयोजन किया। शहर की औरतों को बुलवाया और कर्बला में उनके ऊपर हुए जुल्म को बयान किया। उन लोगों को बताया कि तुम लोग जिस नबी का कलमा पढ़ते हो, उसी के नवासे को तीन दिन तक भूखा प्यासा रखकर शहीद कर डाला। हम नबी के घर वालों के सिरों की चादर तक छीन लिया। हमें बेपर्दा बाजारों में घुमाया गया। नबी को मानने वाले कर्बला में हुए जुल्म को सुनकर आंसू बहाते थे। मजलिसों के सिलसिले ने एक इंकलाब पैदा किया, जिससे यजीदी सत्ता हमेंशा के लिए दफन हो गई।

उन्होंने कहा कि इमाम हुसैन के बेटे हजरत जैनुल आब्दीन को मदीने में अगर को शादी व अन्य समारोह के लिए आमंत्रित करता तो वह कहते थे कि हम उन्हीं समारोह में जाते हैं, जहां पर मेरे बाबा इमाम हुसैन की मजलिस आयोजित होती है। मजलिस में जैनुल आब्दीन उस जगह पर बैठा करते थे, जहां पर सोगवार अपने जूते व चप्पल उतारा करते थे। इमामों के मानने वाले आज भी अपने घरों में मजलिस आयोजित करते हैं।

उन्होंने कहा कि कर्बला की घटना के बाद से यजीद का नाम लेने वाला कोई नहीं रहा, लेकिन हुसैन का सिक्का हर धर्म, जाति व क्षेत्र में चलता है। इमाम हुसैन की शहादत किसी धर्म विशेष के लिए नहीं, बल्कि मानवता की रक्षा के लिए थी।

मजलिस से पूर्व मोहम्मद रफीक, सुहेल बस्तवी, जर्रार हुसैन, फरजान रिजवी ने सोज, सलाम व नौहा पेश किया।


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