मातृ मृत्यु के कारणों का पता कर दूर की जाएंगी कमियां

 मातृ मृत्यु के कारणों का पता कर दूर की जाएंगी कमियां

निजी संवाददाता

स्वास्थ्य विभाग द्वारा किया जा रहा है डेथ केस का सर्वे प्रसव के दौरान माताओं की होने वाली मृत्यु के कारणों का पता लगाने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा सर्वे किया जा रहा है। सर्वे में सहयोगी संस्था इंटरनेशनल न्यूट्रेशन स्वर्ग के अधिकारी सहयोग कर रहे हैं। मौत के कारणों का पता लगाकर स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए संस्था द्वारा सुझाव दिया जाएगा। स्वास्थ्य विभाग द्वारा इन कमियों को दूर कर आगे से मातृ मृत्यु को न्यूनतम करने का प्रयास किया जाएगा। 

जिले में पहली अप्रैल से अब तक लगभग दो दर्जन माताओं की मौत प्रसव के दौरान या प्रसव के उपरांत हुई है। ब्लॉक व जिले स्तर पर कमेटी कमेटिया गठित कर हर डेथ का सर्वे कराया जा रहा है। टीम मृतक के घर पर पहुंचकर घर वालों व क्षेत्रीय एएनएम, आशा से बातचीत कर मौत के कारणों का पता लगा रही है।

पिछले दिनों यह टीम बहादुरपुर ब्लॉक के रामपुर व लोनहा गांव में पहुंची। एनआई स्वर्ग के मंडलीय समन्वयक डॉ. विनय शंकर व जिला मातृ परामर्शदाता राजकुमार सहित अन्य स्वास्थ्य कर्मियों ने गांव में पहुंचकर मौत के कारणों का पता लगाने का प्रयास किया। उनके साथ ब्लॉक स्तरीय टीम में शामिल डॉ. श्रद्धा सिंह, बीसीपीएम शिव भूषण श्रीवास्तव भी मौजूद रहे। ब्लॉक स्तरीय टीम द्वारा सभी डेथ के मामलों का सर्वे कर अपनी रिपोर्ट तैयार की जा चुकी है। 

एसीएमओ आरसीएच डॉ. सीके वर्मा का कहना है कि डेथ सर्वे का मकसद मौत के कारणों का पता लगाकर भविष्य के लिए कमियों को दूर करना है। इससे स्वास्थ्य सेवाओं में निरंतर सुधार भी हो रहा है। पिछले वर्षों की तुलना में मातृ मृत्यु में लगातार कमी आ रही है।  

चार कारण बन रहे हैं मौत का कारण

मातृ मृत्यु के कारणों के हो रहे सर्वे के बारे में एसीएमओ ने बताया कि सर्वे में फिलहाल चार मुख्य कारण सामने आ रहे हैं। इसमें सबसे बड़ा कारण पीपीएच (पोस्ट पार्टम हैम्ब्रेज) अर्थात प्रसव के दौरान अत्यधिक खून का बहना है। ज्यादातर मामलों में देखा गया कि लोगों ने गर्भवती को अस्पताल पहुंचाने में देरी की, जिससे ज्यादा खून बह गया। इसके अलावा प्रसव के दौरान व उपरांत झटके आना, सेफ्सिस या महिला का पहले से एनीमिक होना कारण पाया गया है। डॉ. वर्मा का कहना है कि प्रसव के समय महिला को समय से अस्पताल में भर्ती करा दिया जाना चाहिए। अस्पताल में सुविधाएं उपलब्ध होती हैं। इसके अलावा गंभीर मरीजों को हॉयर सेंटर रेफर करके भी इलाज कराया जाता है।

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